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शनिवार, 21 अगस्त 2010

राखी का मुहूर्त

राखी बांधने का उचित समय-इस साल बहनें अपने भाई की कलाई पर सुबह 9.22 मिनट के बाद राखी बांध सकती हैं, और ये शुभ मुहूर्त शाम 4 बज कर 24 मिनट तक रहेगा। इसी अवधि के बीच राखी बांधना उचित रहेगा।
राखी का पर्व-भाई-बहन अल्हड़ प्रेम के वो मोती हैं जिन्हें एक सूत्र में बांधा जाए तो बन जाती है प्यार की वो माला जिसे हम प्यार से रक्षा बंधन कहते हैं। रक्षाबंधन यानि भाई का बहन को दिया हुआ रक्षा का वचन और बहन का भाई के लिए ढ़ेर सारा स्नेह।हिन्दु धर्म का ये त्यौहार सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जोकि इस बार 24 अगस्त को पड़ रहा है। इसी दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र बांध कर आजीवन अपनी रक्षा का वचन लेती हैं। मुख्य रूप से भाई बहन के स्नेह का त्यौहार है।शास्त्रों में इस दिन का बहुत महत्व है। परंतु इस बार का त्यौहार शास्त्रोक्त विधि से बांधना आवश्यक है, क्यों कि भद्रा आने से शुभ और अशुभ समय का विचार करना होगा।अनुचित समय में रक्षासूत्र ना बांधे- भद्रायां द्वे ना कर्तव्ये... इसका मतलब है कि श्रावणी फाल्गुनी अर्थात भद्रा में राखी बांधने से प्रजा के लिए हानिकारक हो सकता है। इस दिन की भद्रा का नाम है वृश्चिकी।श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा वाले दिन भक्त श्रवण की पूजा का उल्लेख है। इस दिन श्रवण कुमार को पहले रक्षासूत्र अर्पित कर भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है।पर्व का इतिहास- कहते हैं इस पर्व का संबध महाभारतकाल से है। पूर्णिमा के दिन ही द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण के हाथ पर अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर इसे रक्षासूत्र के रूप में बांधा था। कृष्ण कन्हैया ने इसी प्रेम भावना के प्रति समर्पित को कर चीरहरण के समय समस्त कौरवों से द्रौपदी की लाज बचाई थी।कहा जाता है तभी से बहनों का भाईयों को राखी बांधने का प्रचलन है। रक्षा बंधन को अलग-अलग प्रकार की राखियाँ बांधकर बहनें भाईयों के लिए अपना स्नेह प्रकट करती हैं। और भाई भी आजीवन रक्षा के वचन के साथ-साथ उपहार व भेंट बहनों को देते हैं

"यमुनोत्री" यानि यमुना का उद्गम

यमुनोत्री
यमुना का उदगम
हिन्दुओं के सबसे पवित्र स्थलों को खुद में समेटता गढ़वाल हमें अपने धर्म की संपूर्णता का एहसास कराता है। औऱ वहीं स्थित है यमुनोत्री। चारों धामों में से एक ये जगह पावन और अति पूज्यनीय सरिता यमुना के उद्गम का स्थान है। हिन्दुओं के लिए सबसे मान्य स्थलों में से एक यमुनोत्री अपनी सुन्दरता के साथ – साथ लगातार पिघलते ग्लेशियर के लिए भी जानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अस्ति मुनी का निवास भी यहीं था।
स्थान और वातावरण समुद्रतल से 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री उत्तरांचल के उत्तरकाशी जिले में है। हिमायल की पहाड़ियों से घिरे होने के साथ साथ ये भारत-चीन सीमा के भी नज़दीक है। यमुनोत्री बंदरपूछ पहाड़ के निकट है जो कि इसके उत्तर में स्थित है औऱ 6315 मीटर की ऊंचाई पर है। 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिन्दी पर्वत पर मौदूज सप्तऋषि कुंड ही यमुना नदी का जल स्त्रोत है। यमुनोत्री देहरादून से 278 किमी, ऋषिकेश से 236 किमी, चम्बा से 176 किमी और सान्याछत्ती से महज 21 किलोमीटर की दूरी पर है। गर्मीयों में भी ठंडा रहने वाले इस स्थल का पारा सर्दियों में शून्य से भी नीचे चला जाता है। इसीलिए यात्रियों को गर्म कपड़े साथ ले जाने की हिदायत दी जाती है।
चार धामों की शुरुआत में गढ़वाल के पश्चिमी भाग में यमुनोत्री धाम है। ये यमुना देवी को समर्पित है और बंदरपूछ नामक पर्वत पर स्थित है। साथ ही गंगोत्री के ठीक सामने स्थित है। इस धार्मिक स्थान पर मई से अक्टूबर तक यात्रियों की भीड़ काफी बढ़ जाती है। यानि सबसे ज्यादा यात्री इन्ही महीनों में यहां भ्रमण करने आते हैं। यमुनोत्री यमुना नदी की उदगम है जिसका स्त्रोत इसके 1किलोमीटर आगे स्थित चम्पासार ग्लैशियर है जो कि 4421 मीटर की ऊंचाई पर है। गलैश्यिर का मार्ग सुगम ना होने के कारण बहुत कम तीर्थयात्री यमुना के असल स्त्रोत का दर्शन करने जा पाते हैं।
हिन्दु धर्म में यमुनोत्री का बहुत महत्व है। कहते है अस्ति मुनी भी यहीं निवास किया करते थे। यहां का आकर्षण केंद्र है गर्म पानी का झरना जो यमुनोत्री के साथ ही बहता है। इस गर्म जल में ही चावल और आलू पका कर तीर्थकर इसे धाम में प्रसाद के रुप में भगवान को अर्पित करते हैं। ये पवित्र धाम चारों ओर से घने वन और ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा है।
ऋषिकेश से 213 किलोमीटर की सड़क यात्रा से हनुमानछत्ती तक पहुंचा जा सकता है। इसके आगे 13 किमी तक पैदल यात्रा करके यमुनोत्री तक जाना पड़ता है। फिलहाल पिट्ठू और पालकी जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
मुख्य आकर्षण बिन्दु
यमुनोत्री मंदिर
मुख्यता ये मंदिर देवी यमुना को समर्पित है। उन्नीसवीं सदी के अंत में जयपुर की महारानी गुलेरिया ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। भूकंप में ध्वस्त हो जाने के उपरांत पुनः इसका निर्माण कराया गया। मंदिर के बाहर ही गर्म पानी का झरना बहता है जिसमें चावल और आलू पका कर देवी यमुना को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है।
सूर्य कुंड
कुंड के जल का तापमान लगभग 190 डिग्री फॉरेनहाइट होता है। इसी कुंड में चावल और आलू पाकाए जाते हैं। जिससे वो यमुनोत्री के मुख्य मंदिर में समर्पित किए जा सकें।
दिव्य शिला
यमुनोत्री मंदिर में प्रवेश द्दार पर मजबूत शिला का एक खंभ स्थित है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है।
हनुमान छत्ती-
डोडी तल की शुरुआत पर स्थित ये जगह हनुमान गंगा और यमुना नदी का संगम है ।
सान्या छत्तीयमुना के किनारों पर मौजूद सान्या छत्ती का दृश्य अतयंत मनोहारी है। जो कि यमुनोत्री तक पूरे मार्ग तक मौजूद है।
चम्बा-
तिहरी की ओर मार्ग दर्शन कराता ये स्थल हिमालय की चोटियों की बहुत सुंदर सीनरी प्रस्तुत करता है। 1676 की ऊंचाई पर मौजूद है और यहां आने वाले यात्रियों के लिए सबसे यादगार जगह भी।
यातायात
वायुमार्ग - 196 किमी देहरादून के होते हुए हवाईजहाज यमुनोत्री की ओर प्रस्थान करता है।
रेल – ऋषिकेश 213 किमी और देहरादून से 172 किलोमीटर
सड़क मार्ग- दारासु 107 किमी, तिहरी 149 किमी, ऋषिकेश 213 किमी और देहरादून से 172 किमी यमुनोत्री स्थित है।